Thursday, July 21, 2016

पुस्तक-समीक्षा


पुस्तक-समीक्षा
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पिछले लगभग 20-25 वर्षों के दौरान हिन्दी में ग़ज़ल कहने वालों की संख्या में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ है। हिन्दी में ग़ज़ल संग्रह भी खूब आ रहे हैं। कुछ ग़ज़लगो बाक़ायदा अरूज़ और तगज्जुल का ख़याल रखते हुए चमत्कृत करने वाले अशआर भी हिन्दी में कह रहे हैं। ऐसे ही एक बेहतरीन ग़ज़लकार,जनाब अकेला इलाहाबादी साहब का ग़ज़ल संग्रह,नशेमन, हाल ही में मंज़रे-आम हुआ है।
संग्रह की ग़ज़लें कई रंगों में ढली हुई है। क़दीमी,जदीदी और फ़िक्री ,तीनों तरह के तगज्जुल से लबरेज़ यह संग्रह एक अनोखी छटा बिखेरने में कामयाब हुआ है।
अपना दर्द बयाँ करते हुए अकेला कहते है कि-
क्या करें बात हम रक़ीबों की,
दोस्तों से भी मात खाते हैं। ....ग़ज़ल स०-25
रुमानी शेर की एक झलक संग्रह में कुछ यूँ नज़र आई :-
मेरे दिल पर ज़रा हाथ रख दो सनम
मेरा दिल इक नई ज़िन्दगी पायेगा। .... ग़ज़ल स०-35
शेर में विरोधाभास के ज़रिये चुटीलापन पैदा करना भी ग़ज़लकार को खूब आता है,देखिये:-
ऐशो-इश्तर है मेरे पास मगर,
फिर भी मुझसे कोई गरीब नहीं। ...... ग़ज़ल स०-37
देश के मौजूदा हालात के प्रति चिंता भी लाज़िमी है। एक शेर है उनका ;-
बह रहा है लहू रो रहा है वतन।
उफ़ कहाँ खो गया है वतन का अमन। ....ग़ज़ल स०-04
हालात कुछ भी हों मगर अकेला जी आशावाद का दामन कभी नहीं छोड़ते हैं। हाज़िर है उनका एक शेर :-
वक़्त जो ढल गया है वो फिर आएगा।
लाख मंज़र जहाँ का बदल जाएगा। ....... ग़ज़ल स०-35
संग्रह में 54 बेहतरीन ग़ज़लें हैं, मगर ग़ज़ल सूची में 56 ग़ज़लों का ज़िक्र है,संभवतः बाइंडिंग में कुछ पेज छूट गए हैं। ग़ज़ल में मक़ते का इस्तेमाल इस बात की तस्दीक़ करता है कि ग़ज़लकार ग़ज़ल के रवायती अंदाज़ का बाक़ायदा पैरवकार है। कवर पेज उम्दा है। छपाई साफ़-सुथरी है। भाषा सरल-सुबोध है। आधारशिला,इलाहाबाद से प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य-75/-है। अकेला जी इस अदबी सफर में यूँ ही गामज़न रहें और अपनी क़लम से अदब की खिदमत करते हुए शिखर तक पहुंचें,यही अल्लाह से दुआ है।
पुस्तक प्राप्ति के लिए ग़ज़लकार से मोबा नं०:- 8377830535 पर संपर्क किया जा सकता है।
कुँवर कुसुमेश
मोबा : 9415518546