Monday, May 27, 2013

मंहगाई की मार


मंहगाई में हो गया,अब जीना दुश्वार।
लगातार यूँ पढ़ रही,मंहगाई की मार।।
मंहगाई की मार,दाम बढ़ते रोज़ाना।
अब न हवा है शुद्ध,और न आबो-दाना।।
बैठे-बैठे रोज़ , सोचता तन्हाई में,
आग लगे,हाँ आग,लगे इस मंहगाई में।।
-कुँवर कुसुमेश 

Tuesday, May 21, 2013

शोर-हो-हल्ला भरे फिल्मों के गाने हो गए


शोर-हो-हल्ला भरे फिल्मों के गाने हो गए।
लग रहा संगीत के चेहरे पे दाने हो गए ।।
एक तो सूरत बिगडती जा रही संगीत की।
और ये बच्चे उसी के ही दीवाने हो गए ।।  
-कुँवर कुसुमेश