Thursday, March 28, 2013

ज़ुल्म होने न दें ग़रीबों पर..........



-कुँवर कुसुमेश 

फ़र्ज़ बनता है ये अदीबों पर. 

ज़ुल्म होने न दें ग़रीबों पर. 

इब्ने-मरियम की तर्ज़ पर चाहे,

झूल जाना पड़े सलीबों पर. 
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शब्दार्थ:
अदीबों=साहित्यकारों,
इब्ने-मरियम=मरियम का बेटा/ईसा मसीह 
सलीब=सूली

Monday, March 11, 2013

उठाई तुमने कि हमने दिवार क्या जाने .


कुँवर कुसुमेश 

तड़पता आदमी सब्रो-क़रार क्या जाने .
जो नफ़रतों में पला हो वो प्यार क्या जाने .

चमन की बात ही करना है तो चमन से करो,
ख़िज़ाँ , ख़िज़ाँ है महकती बहार क्या जाने .

दिलों के बीच में उठती दिखाई देती है,
उठाई तुमने कि हमने दिवार क्या जाने .

मिले हैं अपने पराये सभी से जिसको फ़रेब,
भरोसा कैसे करे,ऐतबार क्या जाने .

बिखरना,टूटना सीखा है तड़पती शै ने,
ये दिल है ये भला बातें हज़ार क्या जाने .

न जाने दोस्त समझता है या कोई दुश्मन,
करे 'कुँवर' कोई किसमें शुमार क्या जाने .
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