Friday, November 8, 2013

चलन ई-मेल का


--कुँवर कुसुमेश

हो गया मँहगा सफ़र अब रेल का। 

दाम फिर बढ़ने लगा है तेल का।।  

चिट्ठियां इतिहास बनती जा रही हैं ,

आ गया जब से चलन ई-मेल का।। 

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Friday, November 1, 2013

दीवाली के पर्व पर,बरस रहा है नूर..........................


-कुँवर कुसुमेश

दीवाली के पर्व पर,बरस रहा है नूर.
अहंकार तम का हुआ,फिर से चकनाचूर.

अन्यायी को अंत में,मिली हमेशा मात.
याद दिलाती है हमें,दीवाली की रात.

घर घर पूजे जा रहे,लक्ष्मी और गणेश.
पावन दीवाली करे,दूर सभी के क्लेश.

दीवाली का पर्व ये, पुनः मनायें आज.
और पटाखों से बचे,अपना सकल समाज।।

यश-वैभव-सम्मान में,करे निरंतर वृद्धि.
दीवाली का पर्व ये,लाये सुख-समृद्धि.
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शब्दार्थ: नूर=प्रकाश 

Thursday, October 24, 2013

डेंगू फीवर

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कुँवर कुसुमेश 
डेंगू फीवर आजकल,सचमुच बड़ा विचित्र।
प्लेट-लेट गिरती बहुत,तेजी से है मित्र। । 
तेजी से है मित्र,जान संकट में डाले। 
उल्टी संग बुखार,न संभले,कौन संभाले ? 
कीवी के संग अर्क, पपाया-पत्ती पीकर।  
करते सब कंट्रोल,आजकल डेंगू फीवर। 
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Friday, September 13, 2013

हिंदी दिवस




-कुँवर कुसुमेश 


एक ऊँची उड़ान हिंदी है. 

देश की आन-बान हिंदी है. 

जो सभी के दिलों में घर कर ले,

ऐसी मीठी ज़ुबान हिंदी है.


हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

Monday, May 27, 2013

मंहगाई की मार


मंहगाई में हो गया,अब जीना दुश्वार।
लगातार यूँ पढ़ रही,मंहगाई की मार।।
मंहगाई की मार,दाम बढ़ते रोज़ाना।
अब न हवा है शुद्ध,और न आबो-दाना।।
बैठे-बैठे रोज़ , सोचता तन्हाई में,
आग लगे,हाँ आग,लगे इस मंहगाई में।।
-कुँवर कुसुमेश 

Tuesday, May 21, 2013

शोर-हो-हल्ला भरे फिल्मों के गाने हो गए


शोर-हो-हल्ला भरे फिल्मों के गाने हो गए।
लग रहा संगीत के चेहरे पे दाने हो गए ।।
एक तो सूरत बिगडती जा रही संगीत की।
और ये बच्चे उसी के ही दीवाने हो गए ।।  
-कुँवर कुसुमेश 

Thursday, March 28, 2013

ज़ुल्म होने न दें ग़रीबों पर..........



-कुँवर कुसुमेश 

फ़र्ज़ बनता है ये अदीबों पर. 

ज़ुल्म होने न दें ग़रीबों पर. 

इब्ने-मरियम की तर्ज़ पर चाहे,

झूल जाना पड़े सलीबों पर. 
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शब्दार्थ:
अदीबों=साहित्यकारों,
इब्ने-मरियम=मरियम का बेटा/ईसा मसीह 
सलीब=सूली

Monday, March 11, 2013

उठाई तुमने कि हमने दिवार क्या जाने .


कुँवर कुसुमेश 

तड़पता आदमी सब्रो-क़रार क्या जाने .
जो नफ़रतों में पला हो वो प्यार क्या जाने .

चमन की बात ही करना है तो चमन से करो,
ख़िज़ाँ , ख़िज़ाँ है महकती बहार क्या जाने .

दिलों के बीच में उठती दिखाई देती है,
उठाई तुमने कि हमने दिवार क्या जाने .

मिले हैं अपने पराये सभी से जिसको फ़रेब,
भरोसा कैसे करे,ऐतबार क्या जाने .

बिखरना,टूटना सीखा है तड़पती शै ने,
ये दिल है ये भला बातें हज़ार क्या जाने .

न जाने दोस्त समझता है या कोई दुश्मन,
करे 'कुँवर' कोई किसमें शुमार क्या जाने .
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