Monday, March 19, 2012

फूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक......




कुँवर कुसुमेश 

फूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक.
और हम हैं कि उमीदों पे टिके हैं अब तक.

दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.

लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.

चाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
पर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक.
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दौरे-हाज़िर=वर्तमान समय,   क़ाबिले-कुर्सी=कुर्सी के योग्य.
गर्दिशे-अय्याम=संकट के दिन 

Wednesday, March 7, 2012

रंगों की बौछार (दोहे)



कुँवर कुसुमेश 
हरे-गुलाबी-बैगनी,रंगों की बौछार.
लेकर फिर से आ गया,होली का त्यौहार.

मुँह पर चुपड़े रंग कुछ,कुछ हैं मले गुलाल.
कुछ दारु पी टुन्न हैं,होली का ये हाल.

पापड़-गुझिया-सेब-चिप,और कई पकवान.
पावन होली पर्व का , करते हैं ऐलान.

नफ़रत की होली जले,पनपे हर पल प्यार.
देता है सन्देश ये,होली का त्यौहार.

हफ़्तों तक खाते रहो,गुझिया ले ले स्वाद.
मगर कभी मत भूलना, नाम भक्त प्रहलाद.

हिल मिल रहना सीखिए, करते हैं ताकीद.
आते-जाते पर्व ये,पावन होली-ईद.
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