Thursday, September 29, 2011


कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो

कुँवर कुसुमेश 

कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो.
पलटकर ज़माने के तेवर तो देखो.

जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
मियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.

वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.

दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
कहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.

बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.

बड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो.
*****

Sunday, September 18, 2011


प्लास्टिक-पॉलीथीन पर दोहे.


कुँवर कुसुमेश 

थैली पॉलीथीन की,करती है नुकसान.
जीव-जन्तु खाकर इसे, गवाँ रहे हैं जान.

अक्सर नदियों में दिखी,बहती पॉलीथीन 
निर्मल जल को कर रही,दूषित और मलीन.

धूँ-धूँ जलती प्लास्टिक,जलती पॉलीथीन.
धीरे धीरे कर रही,समृद्ध हॉउस-ग्रीन.

पॉलीथीनों की लगे,अब बिक्री पर रोक.
इनके कारण हो रहे,नाली-नाले चोक.

टूटी-फूटी,प्लास्टिक,रद्दी पॉलीथीन.
बंद नालियों को सदा,करने में तल्लीन.
*****

Tuesday, September 13, 2011


हिंदी दिवस के अवसर पर 
(दो मुक्तक)

कुँवर कुसुमेश 

-१-
एक ऊंची उड़ान हिंदी है.

देश की आन-बान हिंदी है.

जो सभी के दिलों में घर कर ले,

ऐसी मीठी ज़बान हिंदी है.

-२-

हिंदी वाले लोग सभी लिख सकते हैं.

इंग्लिश वाले भी अच्छी लिख सकते हैं.

जिन्हें प्यार है अपनी हिंदी भाषा से,

कम्प्यूटर में भी हिंदी लिख सकते हैं.

*****

Thursday, September 8, 2011


राजनीति पर दोहे 
कुँवर कुसुमेश 

राजनीति में घुस गए,कुछ अपराधी लोग.
करें जुर्म के वास्ते , कुर्सी का उपयोग. 

जाने कैसा आ गया, भारत में भूचाल.
नेता माला माल हैं,जनता है कंगाल.

जिसने जीवन भर किये,जुर्म बड़े संगीन.
ऐसे भी कुछ हो गए, कुर्सी पर आसीन.

किसको छोड़ें और हम,किस पर करें यक़ीन.
राजनीति में दिख रहे,सभी आचरण हीन.

कुछ नेता कुछ माफिया,कर बैठे गठजोड़.
धीरे धीरे देश की , गर्दन रहे मरोड़.

अपराधों में लिप्त हैं,नाम सच्चिदानंद.
टाटों में दिखने लगे,रेशम के पेवन्द.
*****