Wednesday, March 30, 2011


फिर सलीबों पे मसीहा होगा


कुँवर कुसुमेश 

क्या हक़ीक़त में करिश्मा होगा.
वक़्त कल आज से अच्छा होगा.

लोग कहते हैं कि ऐसा होगा,
जबकि लगता है कि उल्टा होगा.

साँप सड़कों पे नज़र आयेंगे,
और बाँबी में सपेरा होगा.

वक़्त दोहरा रहा है अपने को,
फिर सलीबों पे मसीहा होगा.

आदमीयत से जिसको मतलब है,
देख लेना वो अकेला होगा.

है 'कुँवर' सोच ये आशावादी,
रात जायेगी,सवेरा होगा.
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 सलीब-सूली 

Tuesday, March 22, 2011


"जल"
 

कुँवर कुसुमेश 

विषमय होता जा रहा , सरिताओं का नीर.
लेकिन सुनता है नहीं,कोई इनकी पीर.

नदियाँ पर्वत की बहें,हर पल सिल्ट समेत.
यहाँ सिल्ट का अर्थ है,पत्थर, बजरी, रेत .

यही सिल्ट मैदान में,बाधित करे बहाव.
दूषित जल का मुख्य है,कारण जल ठहराव.

दूषित जल से यदि मरे,नित्य समुद्री जीव.
पूरे पर्यावरण की,हिल जायेगी नीव.

जलाभाव से मच रहा,चंहु दिशि हाहाकार.
लगातार धटने लगा,भू का जल भण्डार.

कहीं पड़ा सूखा कभी,कहीं आ गई बाढ़.
ज़रा सोचिये प्रकृति क्यों,करती ये खिलवाड़. 
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Wednesday, March 16, 2011


न बच कर  निकल पाओगे इस गली से

   कुँवर कुसुमेश 

अजब रंग रंगों में है रंगे-होली,
की बूढ़े-जवां कर रहे हैं ठिठोली.

न बच कर निकल पाओगे इस गली से,
जो कल तक थी शर्मा रही आज बोली.

लिबासों में होते हुए बरहना है,
ग़नीमत है ये,कोई नीयत न डोली.

मुबारक उसे जश्ने-होली हो जिसने,
मुहब्बत के रंगों में रूहें डुबोली.

बड़ा नासमझ है जो होली के दिन भी-
गुनाहों से भीगी ये चादर न धो ली.

हम अहले-वतन एक हैं एक रह कर,
मानते रहेंगे 'कुँवर' ईद-होली.

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   बरहना-निर्वस्त्र, अहले वतन-वतन वाले

Thursday, March 10, 2011


अब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ 


कुँवर कुसुमेश

क़ाबिले-ग़ौर है हर बात शगूफ़ा न समझ,
दौरे-हाज़िर को मेरे यार तमाशा न समझ.

जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे,
आदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ.

आज इन्सान के चेहरे पे कई चेहरे हैं,
मुस्कुराहट को मुहब्बत का इशारा न समझ.

आज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर,
अब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ.

ये कहावत है पुरानी-सी मगर सच्ची है,
तू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ.

हमसफ़र और भी हैं साथ निभाने वाले,
तू 'कुँवर'ख़ुद को लड़ाई में अकेला न समझ.

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क़ाबिले-ग़ौर =ध्यान देने लायक, दौरे-हाज़िर=वर्तमान समय